जफ़ा वो करते रहे ऐसे बेवफ़ा की तरह गिला भी कर न सका मैं कभी गिला की तरह वो संग-दिल है सितमगर है बे-मुरव्वत है जो ग़म का हाल सुने सिर्फ़ वाक़िआ' की तरह किसी के बचने का इम्काँ नज़र नहीं आता फ़ज़ा में ज़हर है फैला हुआ हवा की तरह मैं शायद ऊब चुका हूँ हयात से अपनी मुझे हयात भी लगती है अब क़ज़ा की तरह किसी को डस लें तो पानी न पी सके यारो हैं ऐसे लोग यहाँ नाग देवता की तरह वो अपना जुर्म छुपाने को शिम्र बन बैठे हमारा शहर भी लगता है कर्बला की तरह तुम्हारा हुस्न-ओ-शबाब इन दिनों मआ'ज़-अल्लाह नज़र जमाऊँ तो छाने लगे नशा की तरह चमन को फूल तो फूलों को चाहिए ख़ुशबू हर एक शय है यहाँ दोस्तो गदा की तरह 'नक़ीब' अब कोई पहचान ही नहीं अपनी यहाँ तो छा गई तहज़ीब-ए-नौ बला की तरह