जागते जागते उम्र बसर हो ऐसा भी हो सकता है पल में शब-ए-फ़ुर्क़त की सहर हो ऐसा भी हो सकता है जिन लोगों ने जान के मेरा घर कुछ पत्थर फेंकें हैं वो उन का अपना ही घर हो ऐसा भी हो सकता है आज तो बस पत्थर ही पत्थर अपने सिरहाने हैं लेकिन कल उन की आग़ोश में सर हो ऐसा भी हो सकता है राज़ वो दिल का जिस को हम ने अब तक राज़ ही रक्खा है लेकिन उस की सब को ख़बर हो ऐसा भी हो सकता है दुनिया जिस को 'फ़ैज़' समझ बैठे हैं हम इक शीश-महल वो भी कोई रेत का घर हो ऐसा भी हो सकता है