पथराई हुई आँखों को बीनाई अता कर रंगों को मिला चेहरों को यकताई अता कर हर चश्म-ए-सदफ़ क़तरा-ए-नैसाँ के लिए खोल इन झुलसे हुए जिस्मों को रानाई अता कर सहरा के लिए भेज समुंदर से दिशा ले इन झुलसे हुए जिस्मों को रानाई अता कर आहों की तमाज़त से सुलगते हैं दर-ओ-बाम अब नौहा-कुनाँ होंटों पे शहनाई अता कर तक़दीर को तदबीर का आईना दिखा दे दम देते हुए जज़्बों को बरनाई अता कर लफ़्ज़ों के ख़ज़ाने पे हैं जो साँप उन्हें मार या सहमी हुई रूहों को गोयाई अता कर बस तुझ से हों ख़ाइफ़ न डरें और किसी से 'नक़वी' से क़लमकारों को सच्चाई अता कर