जहाँ भी हम ठहर गए मक़ाम बोलने लगे मोहब्बतों की बोलियाँ अवाम बोलने लगे सर-ए-ग़ुरूर ख़म नहीं कोई किसी से कम नहीं सिकंदरों के सामने ग़ुलाम बोलने लगे सुनी जो जाए आँख से वो जिस्म की ज़बान है हज़ार लब ख़मोश हों ख़िराम बोलने लगे कोई भी शख़्स-ए-बे-अदब वो दिन नहीं है दूर जब जुनूँ में अपने आप को इमाम बोलने लगे सजा वो जब दुकान पर मताअ'-ए-आम जान कर नए अमीर बद-मिज़ाज दाम बोलने लगे मुफ़क्किराना इक नज़र जो डालूँ काएनात पर ख़त-ए-शिकस्ता में लिखा कलाम बोलने लगे हयात-बख़्श आब को मियाँ 'शफ़क़' शराब कर चखे बग़ैर आप भी हराम बोलने लगे