ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे जिस को पाना नहीं क्या याद किया जाए उसे तंग है रूह की ख़ातिर जो ये वीराना-ए-जिस्म तुम कहो तो अदम-आबाद किया जाए उसे ज़िंदगी ने जो कहीं का नहीं रक्खा मुझ को अब मुझे ज़िद है कि बर्बाद किया जाए उसे ये मिरा सीना-ए-ख़ाली छलक उट्ठेगा अभी मेरे अंदर अगर ईजाद किया जाए उसे वो गली पूछती है दर-ब-दरी के अहवाल हाँ तो फिर वाक़िफ़-ए-रूदाद किया जाए उसे