ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में मैं मुंहमिक हूँ बहुत ख़ुद को ला बनाने में चराग़-ए-इश्क़ बदन से लगा था कुछ ऐसा मैं बुझ के रह गया उस को हवा बनाने में ये दिल कि सोहबत-ए-ख़ूबाँ में था ख़राब बहुत सो उम्र लग गई इस को ज़रा बनाने में घिरी है प्यास हमारी हुजूम-ए-आब में और लगा है दश्त कोई रास्ता बनाने में महक उठी है मिरे चार-सू ज़मीन-ए-हुनर मैं कितना ख़ुश हूँ तुझे जा-ब-जा बनाने में