कितनी मानूस-निगाही के फ़ुसूँ चौंक पड़े उस ने बेगाना अदाई से जब इरशाद किया उन की नज़रों में हमीं जौर के क़ाबिल ठहरे चाहने वालों को ही कुश्ता-ए-बेदाद किया याद इक टूटे त'अल्लुक़ की दिलाने के लिए भूली-बिसरी हुई यादों ने हमें याद किया दिल भी क्या शोख़-तबीअ'त है कि सपनों का नगर अभी बसने भी न पाया था कि बर्बाद किया घुट के मरने के सलीक़े भी सिखाए होते दिल-फ़िगारों को असीरी से तो आज़ाद किया हम ने तो घर में भी देखी न सुकूँ की सूरत 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता ने क्यों दश्त में घर याद किया कैसी उफ़्ताद पड़ी शहर-ए-तमन्ना पे 'रिशी' जिस ने आबाद किया उस ने ही बर्बाद किया