रखते थे तस्वीरों से दीवार-ओ-दर आबाद ऐसे भी कुछ शहर हुए हैं मिट मिट कर आबाद सर आबाद ख़यालों से ख़्वाबों से नगर आबाद एक जहाँ है बाहर अपने इक अंदर आबाद इश्क़ था अपनी जगह अटल समझौता अपनी जा एक से दिल आबाद रहा और एक से घर आबाद सागर सागर रोने वाले रो कर फिर मुस्काए रात रहे जो बस्ती वीराँ करे सहर आबाद आओ फिर से जीना सीखें बसना बसाना सीखें जैसे परिंद शजर से हैं और उन से शजर आबाद आज तो लगता है हर मंज़र नाच रहा है 'शाकिर' अंदर सुख की धूम मची सो बाहर है आबाद