ज़ाहिद नहीं मस्जिद से कम हुर्मत-ए-मय-ख़ाना मस्तों की जमाअत में मेहराब है पैमाना क्यूँ ज़ुल्फ़ तिरी उलझी रहती है ऐ जानाना हाज़िर है दिल-ए-सद-चाक दरकार हो गर शाना देखे जो तिरी सूरत हो जाए है दीवाना है अक्स से तुझ रुख़ के आईना परी-ख़ाना इस दिल का मिरे जलना रखता है वो कैफ़िय्यत देखेगा जो परवाना हो जाएगा मस्ताना इक नक़्द-ए-निगह पर 'इश्क़' बिकता है तो कर सौदा दे बहर-ए-ख़रीदारी दीदार का बैआना