ज़िंदगी ज़िंदा है लेकिन किसी दम-साज़ के साथ वर्ना यूँ जैसे कबूतर कोई शहबाज़ के साथ बिजलियाँ साथ लिए ज़हर भरे लम्हों की वक़्त चलता है ज़माने में किस अंदाज़ के साथ आसमाँ जाने कहाँ ले के चला है मुझ को ऊपर उठता है बराबर मिरी पर्वाज़ के साथ आज तन्हा हूँ तो क्या, देखता रहना कल तक और आवाज़ें भी होंगी मिरी आवाज़ के साथ एक आग़ाज़ उभरता है हर अंजाम के बा'द एक अंजाम भी पलता है हर आग़ाज़ के साथ एक लम्हा कि गराँ है मुझे तन्हाई में एक दुनिया कि जवाँ है मिरे हमराज़ के साथ