ज़िंदगी की किताब देखता हूँ क्या हुआ इंतिसाब देखता हूँ तुम भी होते हो मेरे पास मगर मैं तुम्हारे ही ख़्वाब देखता हूँ एक चेहरा है मेरी आँखों में क्या गुनाह-ओ-सवाब देखता हूँ उस की ता'बीर है मिरा होना मौत को महव-ए-ख़्वाब देखता हूँ चश्म-ओ-लब गुंग हैं 'अली-यासिर' सामने उस का बाब देखता हूँ