जंगल भी थे दरिया भी साथ चला इक रस्ता भी महरूमी ने ख़्वाबों का झुलस दिया है चेहरा भी रूठ गई ख़ुशबू मेरी छोड़ गया है साया भी तू हर शख़्स का दुख बाँटे तेरा दुख कोई समझा भी इक लम्हा था हासिल-ए-उम्र याद नहीं वो लम्हा भी याद-ए-सफ़र में साथ रही याद थी मेरा रस्ता भी सूना शहर उदास गली गली में था इक साया भी माज़ी मुझ में ज़िंदा है मैं हूँ रूह-ए-फ़र्दा भी