मेरी हस्ती राज़ बन कर रह गई हर अदा ए'जाज़ बन कर रह गई तूर की चोटी निगाह-ए-इश्क़ में नुक़्ता-ए-आग़ाज़ बन कर रह गई शोरिश-ए-दुनिया की हालत क्या कहूँ कर्बला-अंदाज़ बन कर रह गई ज़िक्र-ए-जानाँ के तअस्सुर से नज़र महरम-ए-हर-राज़ बन कर रह गई काएनात-ए-दहर में आवाज़-ए-दिल नग़्मा-ए-बे-साज़ बन कर रह गई मेरी दुनिया-ए-मोहब्बत क्या कहूँ बारगाह-ए-नाज़ बन कर रह गई हर नज़र हर चाल मस्त-ए-नाज़ की बर्क़ का अंदाज़ बन कर रह गई ज़िंदगी ऐ 'ताज' उन के इश्क़ में हासिल-ए-सद-नाज़ बन कर रह गई