ज़िंदाँ-नसीब हूँ मिरे क़ाबू में सर नहीं मेरा सुजूद उन के लिए मो'तबर नहीं क्या है फ़रेब नर्गिस-ए-ग़म्माज़ अगर नहीं बे-वज्ह तू कशाकश-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर नहीं तक़्सीम-ए-गुल पे बहस अनादिल में छिड़ गई गुलज़ार लुट रहा है कुछ उस की ख़बर नहीं लज़्ज़त-शनास-ए-ग़म को है इज़हार-ए-ग़म हराम रोता हूँ और दामन-ए-मिज़्गाँ भी तर नहीं मेरे सुजूद-ए-शौक़ से हो जाए बे-नियाज़ इतना बुलंद हौसला-ए-संग-ए-दर नहीं यूँ बाग़बाँ ने हिम्मत-ए-परवाज़ छीन ली ऐसी भरी बहार है और एक पर नहीं तहसीन-ए-ना-शनास का भूका नहीं 'सुहैल' मैं आबरू-फ़रोश-ए-मता-ए-हुनर नहीं