ज़ीस्त कैसे हसीन हो जाए आदमी जब मशीन हो जाए मुतमइन हैं ख़ुलूस से हम तो आप को बस यक़ीन हो जाए ख़्वाहिश-ए-नफ़्स है यही हर दम साथ इक नाज़नीन हो जाए लोग हैं बे-शुमार जब दिल में कैसे मालिक मकीन हो जाए इश्क़ नादाँ का जब हुआ कामिल फिर कोई क्यों ज़हीन हो जाए भर गया ज़िंदगी से दिल अब तो मौत शायद मुई'न हो जाए जन्म होगा कि मग़्फ़िरत होगी फ़ैसला अब मुबीन हो जाए कोई 'तन्हा' ग़ज़ल सुनाए तो रूह ताज़ा-तरीन हो जाए