ज़ख़्म-ए-दिल तार-तार मत करना ज़िक्र माज़ी का यार मत करना हम ने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं हम से ज़िक्र-ए-बहार मत करना जब तलक मुतमइन न हो जाओ राज़-ए-दिल आश्कार मत करना ये तबस्सुम सज़ा न बन जाए ये ख़ता बार बार मत करना आँख बन कर के राज़-दारों में हर किसी का शुमार मत करना लोग दिल में निफ़ाक़ रखते हैं उजलत-ए-ए'तिबार मत करना तुझ को बुज़दिल शुमार कर लेंगे छुप के पीछे से वार मत करना ज़िंदगी का भी एक मक़्सद है हर जगह जाँ निसार मत करना