जलाए जब शो'ला-ए-तहय्युर तो ज़ेहन ढूँढे पनाह किस की ये किस के मा'नी हुए हैं साबित ये सूरतें हैं गवाह किस की ये चश्म-ए-लैला कहाँ से आई ये क़ल्ब-ए-महज़ूँ कहाँ से उभरा जो बा-ख़बर हैं उन्हें ख़बर है निगाह किस की है आह किस की जमाल-ए-फ़ितरत के लाख परतव क़ुबूल-ए-परतव की लाख शक्लें तरीक़-ए-'इरफ़ाँ मैं क्या बताऊँ ये राह किस की वो राह किस की ये किस के ‘इश्वों का सामना है कि लज़्ज़त-ए-होश हो गई गुम ख़ुदी से कुछ हो चला हूँ ग़ाफ़िल पड़ी है मुझ पर निगाह किस की