जल्वा-ए-साक़ी-ओ-मय जान लिए लेते हैं शैख़ जी ज़ब्त करें हम तो पिए लेते हैं दिल में याद उन की जो आते हुए शरमाती है दर्द उठता है कि हम आड़ किए लेते हैं दौर-ए-तहज़ीब में परियों का हुआ दूर नक़ाब हम भी अब चाक-ए-गरेबाँ को सिए लेते हैं ख़ुदकुशी मन' ख़ुशी गुम ये क़यामत है मगर जीना ही कितना है अब ख़ैर जिए लेते हैं मुद्दत-ए-वस्ल को परवाने से पूछें उश्शाक़ वो मज़ा क्या है जो बे-जान-दिए लेते हैं