जल्द कर दे ग़म-ए-फ़ुर्क़त के हवाले मुझ को तेरे मिलने की ख़ुशी मार न डाले मुझ को ज़ुल्म के नाम पे झुकना नहीं शेवा मेरा प्यार के नाम पे कोई भी झुका ले मुझ को मैं किसी की निगह-ए-नाज़ का दीवाना हूँ क्या लुभाएँगे छलकते हुए प्याले मुझ को अब शब-ए-ग़म के अँधेरों का नहीं ख़ौफ़ कोई मिल गए हैं तिरी यादों के उजाले मुझ को तुझ को भी कर न दे बर्बाद मिरी बर्बादी सोच ले इतना ज़रा लूटने वाले मुझ को मैं वो परवाना हूँ जिस सम्त चला जाता हूँ घेर लेते हैं वहीं आ के उजाले मुझ को मैं तो तलवार के साए में पड़ा हूँ 'नय्यर' क्या डराएँगे भला बर्छी-ओ-भाले मुझ को