जल्वे हों रू-ब-रू तो तमाशा करे कोई जब कुछ नज़र न आए तो फिर क्या करे कोई हुस्न-ए-लतीफ़ क्यों हो असीर-ए-निगाह-ए-शौक़ हम ख़ुद ये चाहते हैं कि पर्दा करे कोई सदहा हिजाब-हा-ए-तअ'य्युन के बावजूद वो क्या करें जो उन की तमन्ना करे कोई थर्रा के रह गई है मिरी काएनात-ए-होश ऐसे भी सामने से न गुज़रा करे कोई किस किस से राह-ए-दोस्त में दामन छुड़ाईए हर ज़र्रा चाहता है कि सज्दा करे कोई हर क़ल्ब मुज़्तरिब है मगर उन की मस्लहत दुनिया ख़राब-ए-ग़म है मगर क्या करे कोई मेरी निगाह-ए-शौक़ से इस बज़्म-ए-नाज़ में वो हुस्न आ रहा है कि देखा करे कोई दिल आश्ना-ए-ग़म हो तो ऐ 'कैफ़' बज़्म-ए-दहर ऐसा निगार-ख़ाना है देखा करे कोई