जीने में ये ग़फ़्लत फ़ितरत ने क्यों तब'-ए-बशर में दाख़िल की मरने की मुसीबत जानों पर क्यों क़ुदरत-ए-हक़ ने नाज़िल की क्यों तूल-ए-अमल में उलझाया इंसान ने अपने दामन को क्यों ज़ुल्फ़-ए-हवस के फंदे में फॅंसती है तबी'अत ग़ाफ़िल की क्यों हिज्र के सदमे होते हैं क्यों मुर्दों पे ज़िंदे रोते हैं क्यों जंग में जानें जाती हैं क्यों बढ़ती है हिम्मत क़ातिल की मंतिक़ का तो दा'वा एक तरफ़ ताक़त की ये शोख़ी एक तरफ़ क्या फ़र्क़ है ख़ैर-ओ-शर में यहाँ क्या जाँच है हक़्क़-ओ-बातिल की