जल्वे हैं तेरे हुस्न के शाम-ओ-सहर अलग अलग बहर-ए-नज़ारा चाहिए ज़ौक़-ए-नज़र अलग अलग हुस्न-ए-अज़ल है मुनफ़रिद जल्वे हैं उस के बे-शुमार बादा-ए-नाब एक है ख़ुम हैं मगर अलग अलग अहल-ए-हवस को है सुरूर साहिब-ए-दिल को बे-ख़ुदी नर्गिस-ए-नाज़ ने किया अपना असर अलग अलग ये भी है कोई ज़िंदगी ऐसी भी क्या कशीदगी हम हैं इधर जुदा जुदा वो हैं उधर अलग अलग ग़ैर पे राज़ खुल गया हुस्न को तैश आ गया नाला-ए-शौक़ ने किया अपना असर लग अलग मस्त-ए-नशात-ओ-सरख़ुशी शब को बहम थे हुस्न-ओ-इश्क़ शोर-ए-अज़ाँ ने कर दिया वक़्त-ए-सहर अलग अलग शर्म का उन को है लिहाज़ वज़्अ का हम को है ख़याल हम भी हैं उन से दूर दूर वो हैं अगर अलग अलग उन को ये डर था बज़्म में अहल-ए-नज़र को शक न हो आए तो मेरे साथ साथ बैठे मगर अलग अलग मैं भी हूँ मुज़्तरिब 'वली' यार को भी है बेकली दोनों का हाल है बुरा वक़्त-ए-सफ़र अलग अलग