खो जाते हैं दरिया मिट्टी प्यासी रह जाती है सदियों रहने वाली ज़र्द उदासी रह जाती है आँख के पीछे क्या होता है इल्म नहीं हो सकता फ़नकारों की आख़िर रूप-शनासी रह जाती है खुल कर अपने इश्क़ का हम ने तो इज़हार किया है घट कर रह जाए तो चाहत बासी रह जाती है दोपहरों को जागती रहती है सायों की सूरत दिन हो जाता है पर रात ज़रा सी रह जाती है सरमाए की गर्दिश है हर वक़्त ज़रूरी 'हज़रत' जौहड़ बनता है जब आब-निकासी रह जाती है