ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा अँधेरों के अंदर उतर जाऊँगा मिरी पत्तियाँ सारी सूखी हुईं नए मौसमों में बिखर जाऊँगा अगर आ गया आइना सामने तो अपने ही चेहरे से डर जाऊँगा वो इक आँख जो मेरी अपनी भी है न आई नज़र तो किधर जाऊँगा वो इक शख़्स आवाज़ देगा अगर मैं ख़ाली सड़क पर ठहर जाऊँगा पलट कर न पाया किसी को अगर तो अपनी ही आहट से डर जाऊँगा तिरी ज़ात में साँस ली है सदा तुझे छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा