जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है तो हर ज़बान से बस अल्लाह-हू निकलता है हलाल रिज़्क़ का मतलब किसान से पूछो पसीना बन के बदन से लहू निकलता है ज़मीन और मुक़द्दर की एक है फ़ितरत कि जो भी बोया वही हू-ब-हू निकलता है ये चाँद रात ही दीदार का वसीला है ब-रोज़-ए-ईद ही वो ख़ूब-रू निकलता है तिरे बग़ैर गुलिस्ताँ को क्या हुआ 'आदिल' जो गुल निकलता है बे-रंग-ओ-बू निकलता है