ज़मीं से गुज़रे हैं या आसमाँ से गुज़रे हैं जहाँ को साथ लिया है जहाँ से गुज़रे हैं हुआ चमन में फिर एलान-ए-आशियाँ-बंदी अभी की बात है इक इम्तिहाँ से गुज़रे हैं ब-जोश-ए-सई-ए-बग़ावत ज़मीं के ये ज़र्रे हज़ारों बार सर-ए-आसमाँ से गुज़रे हैं वहीं उलझ से गए हैं वहीं ठिठुक से गए निगाहें अपनी बचा कर जहाँ से गुज़रे हैं न पूछिए कशिश-ए-मंज़िल-ए-ग़म-ए-जानाँ यहीं के हो गए जो भी यहाँ से गुज़रे हैं क़दम क़दम में हमारे है जज़्बा-ए-तख़्लीक़ वहीं उभार दी मंज़िल जहाँ से गुज़रे हैं 'शिफ़ा' बढ़ो कि उफ़ुक़-दर-नज़र रजज़-बर-लब शफ़क़ की आड़ में कुछ कारवाँ से गुज़रे हैं