ज़मीर-ए-नौ-ए-इंसानी के दिन हैं सदाक़त की जहाँबानी के दिन हैं तिलिस्म-ए-सुब्ह-काज़िब ख़ुद ही टूटा तुलूअ'-ए-सुब्ह-ए-नूरानी के दिन हैं जुमूद-ए-फ़िक्र तोड़ा फिर बशर ने उरूज-ए-ज़ेहन-ए-इंसानी के दिन हैं हुकूमत-ए-वक़्फ़-ए-इस्तिब्दाद क्यूँ हो उसी नुक्ते की अर्ज़ानी के दिन हैं हुए बे-दस्त-ओ-पा ज़ालिम पुराने सितम की ख़ाना-वीरानी के दिन हैं खुली हर-फ़र्द-ओ-हर-मिल्लत की क़िस्मत कि आज़ादी की सुल्तानी के दिन हैं 'सहर' वाजिब है ताज़ीम-ए-तग़य्युर ये माना हम ने हैरानी के दिन हैं