जाने लगे हैं अब दम-ए-सर्द आसमाँ तलक ठंडी सड़क बनी है यहाँ से वहाँ तलक जलते हैं ग़म से जान-ओ-दिल-ओ-सीना-ओ-जिगर चारों तरफ़ है आग बुझाऊँ कहाँ तलक बीमार हो गया हूँ मैं क़हत-ए-शराब से लिल्लाह ले चलो मुझे पीर-ए-मुग़ाँ तलक मस्जिद से दूर है ये दुकाँ मय-फ़रोश की आती नहीं है कान में बांग-ए-अज़ाँ तलक निकला जो दम तो राहत-ओ-आराम है 'असीर' आवारगी है जिस्म की रूह-ए-रवाँ तलक