ज़रा धूप उस सिल को छू ले मियाँ By Ghazal << मेरे शिकवे का ज़रा उस पे ... ज़ख़्मों के दहन भर दे ख़ं... >> ज़रा धूप उस सिल को छू ले मियाँ यही बर्फ़ हो जाए आब-ए-रवाँ हरी घास जंगल नहीं छोड़ती हवा शहर की लाख हो मेहरबाँ धुनी रुई सूरत उड़े ए'तिबार रिदा-ए-तअल्लुक़ हुई धज्जियाँ समुंदर मिरे यार पथरा गया कि हैं रेत में दफ़्न बीनाइयाँ Share on: