ज़र्द चेहरा है मिरा ज़र्द भी ऐसा-वैसा हिज्र का दर्द है और दर्द भी ऐसा-वैसा ऐसी ठंडक कि जमी बर्फ़ हर इक ख़्वाहिश पर सर्द लहजा था कोई सर्द भी ऐसा-वैसा अब उसे फ़ुर्सत-ए-अहवाल मयस्सर ही नहीं वो जो हमदर्द था हमदर्द भी ऐसा-वैसा या'नी इस धूल के छुटने पे भी इल्ज़ाम-ए-जुनूँ कोई तूफ़ाँ है पस-ए-गर्द भी ऐसा-वैसा पूरी बस्ती में बस इक शख़्स से निस्बत मुझ को मुझ से मुंकिर है वो इक फ़र्द भी ऐसा वैसा इश्क़ ने रेल की पटरी पे लिटाया जिस को था जवाँ-मर्द जवाँ-मर्द भी ऐसा-वैसा क्या तुझे हिज्र के आज़ार बताए 'कोमल' तू तो बे-दर्द है बे-दर्द भी ऐसा-वैसा