जाता है मिरे घर से दिल-दार ख़ुदा-हाफ़िज़ है ज़िंदगी अब मुश्किल बे-यार ख़ुदा-हाफ़िज़ वो मस्त-ए-शराब-ए-हुस्न ग़ुस्से से निहायत ही खींचे होए आता है तलवार ख़ुदा-हाफ़िज़ मुझ पास तबीब आ के कहने लगा ऐ यार बे-तरह का है इस को आज़ार ख़ुदा-हाफ़िज़ हासिल नहीं दरमाँ का वो है ये मरज़ जस से जाँ-बर न हुआ कोई बीमार ख़ुदा-हाफ़िज़ बे-तरह कुछ ईधर को वो मस्त-ए-शराब-ए-हुस्न खींचे हुए आता है तलवार ख़ुदा-हाफ़िज़ ऐ शैख़ तू उस बुत के कूचे में तो जाता है हो जाए न ये सुब्हा ज़ुन्नार ख़ुदा-हाफ़िज़ डरता हूँ कि दिल हर दम मलता है न हो जावे उस चश्म-ए-सितम-गर का बीमार ख़ुदा-हाफ़िज़ यूँ मेहर से फ़रमाया उस माह ने वक़्त-ए-सुब्ह हम जाने हैं अब तेरा 'बेदार' ख़ुदा-हाफ़िज़