जौहर-ए-पाक तिरा ख़ाक में गर ख़ाक न हो ता-अबद लब पे तिरे शिकवा-ए-अफ़्लाक न हो आबरू-रेज़-ए-ख़ुदी हो न अगर तू ख़ुद ही उम्र भर आँख तिरी अश्क से नमनाक न हो है तिरी सोख़्ता-सामानी ही से उस का वजूद शो'ला रहता है कहाँ जब ख़स-ओ-ख़ाशाक न हो अज़्म-ए-तस्ख़ीर के जज़्बात हों आँखों में अगर मुन्हरिफ़ तुझ से कभी फ़ितरत-ए-चालाक न हो रश्क-ए-जन्नत हो कहाँ जौहर-ए-दाना की नुमूद हाथ से अपने अगर उस का जिगर चाक न हो इस हक़ीक़त को ख़ुदारा नज़र-अंदाज़ न कर सर्द हो जाता है वो शो'ला जो बेबाक न हो ग़ैर-मुमकिन है 'अमीं' हल हो मोअम्मा-ए-हयात दिल अगर पाक न हो दीदा-ए-दर्राक न हो