जावेदाँ क़द्रों की शमएँ बुझ गईं तो जल उठी तक़दीर-ए-दिल आज इस मिट्टी के हर ज़ी-रूह ज़र्रे में भी है तस्वीर-ए-दिल अपने दिल की राख चुन कर काश इन लम्हों की बहती आग में मैं भी इक सय्याल शोले के वरक़ पर लिख सकूँ तफ़्सीर-ए-दिल मैं न समझा वर्ना हंगामों भरी दुनिया में इक आहट के संग कोई तो था आज जिस का क़हक़हा दिल में है दामन-गीर-ए-दिल रुत बदलते ही चमन चू हम-सफ़ीर अब के भी कोसों दूर से आ के जब इस शाख़ पर चहके मिरे दिल में बजी ज़ंजीर-ए-दिल क्या सफ़र था बे-सदा सदियों के पुल के उस तरफ़ उस मोड़ तक पै-ब-पै उभरा सुनहरी गर्द से इक नाला-ए-दिल-गीर-ए-दिल वार दुनिया ने किए मुझ पर तो 'अमजद' मैं ने इस घमसान में अपना सीना चीर कर रख दी नियाम-ए-हर्फ़ में शमशीर-ए-दिल