ज़वाल-ए-हुस्न को हुस्न-ए-निगार क्या जाने ख़िज़ाँ क़दम-ब-क़दम है बहार क्या जाने लिखा है उस के मुक़द्दर में इज़्तिराब-ए-दवाम क़रार क्या है दिल-ए-बे-क़रार क्या जाने नसीब राहत-ए-क़ुर्ब-ए-दवाम हो जिस को वो लज़्ज़त-ए-ख़लिश-ए-इंतिज़ार किया जाने समझ रहे हैं जिसे सब गुनाहगार यहाँ उसी पे हो करम-ए-किर्दगार क्या जाने किए पे अपने हो ख़ुद मुन्फ़इल बशर आख़िर यही हो जब्र यही इख़्तियार क्या जाने तड़प रहा हूँ मैं अपने गुनाह गिन गिन कर उसी का नाम हो रोज़-ए-शुमार क्या जाने कहाँ ये शाम-ए-ग़रीबाँ कहाँ वो सुब्ह-ए-वतन वो फ़र्क़-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-निहार क्या जाने जो पाँव तोड़ के बैठे सर-ए-रह-ए-मंज़िल वो कब उठेंगे कोई शहसवार क्या जाने ब-ईं कमाल-ए-ख़िरद क्यूँ है माइल-ए-इल्हाद मक़ाम-ए-‘जोश’ को 'महरूम'-ए-ज़ार क्या जाने