पहलू में दिल है दर्द की दुनिया कहें जिसे पर इस क़दर उजाड़ कि सहरा कहें जिसे वो रोब-ए-हुस्न था कि बन आई न हम से बात यूँ हाल-ए-दिल कहा कि न कहना कहें जिसे आँखों से देखने को तो अब भी हैं देखते थी और चीज़ ज़ौक़-ए-तमाशा कहें जिसे मानिंद-ए-माह उस का फ़लक पर दिमाग़ हो झूटों भी ताब-ए-हुस्न में तुम सा कहें जिसे सब आप के तग़ाफ़ुल-ओ-जोर-ओ-जफ़ा बजा है एक अपना शिकवा कि बे-जा कहें जिसे ज़ौक़-ए-सुख़न के दिन भी थे शायद वही कि जब दिल में कसक थी दर्द-ए-तमन्ना कहें जिसे 'महरूम' शाइ'रों में बहुत नामवर नहीं इतना ज़रूर है कि सब अच्छा कहें जिसे