मैं ने देखा नहीं हिन्दू या मुसलमान हो तुम हाँ फ़क़त इतना है देखा कि इक इंसान हो तुम बस तिरी ही तो मोहब्बत में लिखी है मैं ने मेरी इस पहली ग़ज़ल का भी तो उन्वान हो तुम तेरे दिल में मैं नहीं पर मिरे दिल में तुम हो तुम पे सौ जान से क़ुर्बान मिरी जान हो तुम तेरी आँखों के समुंदर में मैं डूबूँगा नहीं मुझ को मालूम है ये मेरी निगहबान हो तुम गर मोहब्बत से कहोगी तो चला जाऊँगा इतनी सी बात है क्यों इतना परेशान हो तुम एक ही ज़ात ने हम सब को बनाया है 'तुराब' ऐसा लगता है कि इस बात से अंजान हो तुम