जवानी क्या है हसीं यादगार का आलम न होगा ऐसा किसी ताजदार का आलम भरे शबाब में लैल-ओ-नहार का आलम कहाँ से लाइए सब्र-ओ-क़रार का आलम फ़ज़ा इक हाल पे ठहरी रहे ये ना-मुम्किन नहीं है ख़ुद पे यहाँ इख़्तियार का आलम ग़ज़ल हज़ल पे नहीं मुनहसिर शुऊ'र मियाँ है मआ'नी-ख़ेज़ दिलावर-फ़िगार का आलम वो बार बार गए लौट कर के आए भी मगर न ख़त्म हुआ इंतिज़ार का आलम महक है मिट्टी में ऐसी के दिल को खींचे है न मुझ से पोछिए उन के दयार का आलम जो उन को देख ले इक बार देखता ही रहे हसीन चेहरे पे हुस्न-ओ-वक़ार का आलम जनाब-ए-इश्क़ से कह दो बहुत हसीन है वो उन्हीं पे ख़त्म है सोला-सिंगार का आलम जहाँ के साथ समुंदर हसीं चमन-ज़ारीं लो देख लो मिरे परवरदिगार का आलम क़लंदराना नज़र है तिरी अजब 'आसी' है रहमतों से सजा हुस्न-ए-यार का आलम