ऐसी दुनिया का ए'तिबार नहीं कोई भी जिस में ग़म-गुसार नहीं ज़िंदगी को गुज़ारने वालो क्या तुम्हें अपना इंतिज़ार नहीं चाहतों का वहाँ वजूद कहाँ ख़्वाहिशों का जहाँ शुमार नहीं फिर भी होगा नहीं उसे एहसास पत्थरों से लहू गुज़ार नहीं तुम सुनो तो सिनाओं दिल की बात ज़िंदगी इस ज़मीं पे बार नहीं तुम ने वा'दा तो कर लिया लेकिन साँस का कोई ए'तिबार नहीं क़ुर्बतें हों न हों मगर 'मंज़र' हम को दिल से कभी उतार नहीं