जज़्बा-ए-शौक़ कम नहीं होता उन के जाने का ग़म नहीं होता सामना हो के हो न पास-ए-अदब मुझ से ऐसा सितम नहीं होता दिल ने लाखों सहे हैं रंज-ओ-अलम फिर भी पाबंद-ए-ग़म नहीं होता कैसे रोती हैं रोज़-ओ-शब आँखें उन का दामन भी नम नहीं होता गर्दिश-ए-रोज़गार के हाथों रंज-ओ-ग़म कुछ भी कम नहीं होता हैं तो ख़ुश-पोश वज़्अ-दार बहुत हर कोई मोहतरम नहीं होता काम लेते हैं वो भी हिकमत से जिन में जाह-ओ-हशम नहीं होता