मैं हुजूम-ए-ग़म से घबराया नहीं कोई लम्हा गरचे रास आया नहीं वक़्त की बदली हुई क़द्रों के साथ ज़िंदगी में इंक़लाब आया नहीं जिन की ज़ुल्फ़ों का रहा हूँ मैं असीर उन की यादों ने भी तड़पाया नहीं चमका है हर लम्हा उम्मीदों का चाँद वक़्त की गर्दिश ने गहनाया नहीं बद-नसीबी डेरा डाले ही रही फिर भी कुछ लोगों ने ठुकराया नहीं जिस के दर पर मुद्दतों सज्दा किया उस ने भी कुछ फ़ैज़ पहुँचाया नहीं