झिड़की नहीं देते हैं कि ग़ुस्सा नहीं होता आशिक़ पे सितम वस्ल में क्या क्या नहीं होता बदनाम हुआ करते हैं गो इश्क़ में आशिक़ पर मेरी तरह कोई भी रुस्वा नहीं होता जुज़ शर्बत-ए-दीदार करो लाख दवाएँ बीमार-ए-मोहब्बत कभी अच्छा नहीं होता ख़लख़ाल की आवाज़ से चौंक उठते हैं मुर्दे कब हश्र तिरे कूचे में बरपा नहीं होता बाद-ए-सहरी से कोई ग़ुंचा नहीं खिलता जब तक कि तिरा बंद-ए-क़बा वा नहीं होता रहता है तसव्वुर जो इक आईना-जबीं का हैरत नहीं होती है कि सकता नहीं होता कब यार के मिज़्गाँ का तसव्वुर नहीं 'वहबी' कब जिस्म मिरा सूख के काँटा नहीं होता