नख़्ल-ए-उम्मीद में समर आया हुस्न उन का मुराद पर आया क़स्द-ए-का'बा था दैर में पहूँचा किस तरफ़ ध्यान था किधर आया रोया मैं याद-ए-यार में जब जब सैल अश्कों का ता कमर आया वास्ता गो दिया पयम्बर का न मिरा फिर के नामा-बर आया कर दिया कुश्ता चर्ख़ ने लेकिन न बग़ल में वो सीम-बर आया ख़ूब देखा मगर सिवा तेरे न कोई दूसरा नज़र आया जान दी हम ने दर्द-ए-फ़ुर्क़त से न ख़बर को वो बे-ख़बर आया सुब्ह की हम ने तारे गिन गिन कर पर वो मह-रू न रात भर आया कट गई बातों ही में वस्ल की रात मुद्दआ' दिल का कुछ न बर आया जब दिया उस ने भर के ग़ैर को जाम ख़ून आँखों में मेरी भर आया हो गई शर्म माने'-ए-वसलत रहम भी उन को मुझ पे गर आया नज़र-ए-चर्ख़ से गिरा ख़ुर्शीद महवश अपना जो बाम पर आया अपने दिल में ये सोच लो 'वहबी' जान जाएगी दिल अगर आया