झुका सके न मुझे हादसे मोहब्बत के वही हूँ मैं तो वही सिलसिले मोहब्बत के ये और बात कि तुम ही ने इम्तिहाँ न लिया सबक़ तो याद थे सारे मुझे मोहब्बत के तलाश कर उन्हें अहराम-ए-मिस्र की सूरत हैं दश्त-ए-दिल में कई मक़बरे मोहब्बत के बताऊँ मैं तुझे अंजाम-ए-आरज़ू कैसे बना रहा हूँ अभी ज़ाइचे मोहब्बत के हवा ये कैसी चली है सर-ए-दयार-ए-वफ़ा बुझे बुझे हैं दिलों में दिए मोहब्बत के न जाने कैसे मराहिल हैं उस जगह दरपेश रुके हुए हैं जहाँ क़ाफ़िले मोहब्बत के रह-ए-वफ़ा में क़दम देख भाल कर रखना कुछ इतने सहल नहीं रास्ते मोहब्बत के कशाकश-ए-ग़म-ए-दुनिया से किस को फ़ुर्सत है करूँ मैं किस से यहाँ मशवरे मोहब्बत के ज़रा सा भी मुझे ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ नहीं 'शाहिद' महक रहे हैं अभी गुल-कदे मोहब्बत के