झुकना पड़ता है वो ग़ुस्से से जो तन जाते हैं आप हम रूठते हैं आप ही मन जाते हैं हों ख़ुशामद की जो बातें तो वो मन जाते हैं काम बिगड़े हुए बातों ही में बन जाते हैं ख़ूब निभती है कि जब कुछ न रहे बात का पास जिस तरह तब्अ' हो हम वैसे ही बन जाते हैं मेरी हमदर्दी है बुलबुल को बचाना या-रब दाम-ए-सय्याद लिए सू-ए-चमन जाते हैं तुम रहो ग़ैरों में अब शर्म रखो या न रखो हम ही इस बज़्म से ऐ अहद-शिकन जाते हैं थे अभी तो वो यहाँ कहते हैं और ढूँढते हैं ख़्वाब हम देख के दीवाने से बन जाते हैं इस तरह फिरती हैं नज़रें तिरी हम से बे-दीद चौकड़ी भरते हुए जैसे हिरन जाते हैं उन से मतलब निकल आते हैं सब आसानी से ख़ूब लड़-भिड़ के जो आपस में वो छन जाते हैं हम गड़े जाते हैं क्या क्या न हया से दिल में देने जब ग़ैर को वो गोर-ओ-कफ़न जाते हैं क्यों किसी और का ग़ुस्सा वो उतारें हम पर बीच में बोल के हम मुफ़्त में सन जाते हैं जब बहार आई वही दश्त वही तुम 'साबिर' आप दीवाने हैं जो सू-ए-वतन जाते हैं