जो खोए-खोए से होश-ओ-हवास रहते हैं सबब ये है वो मिरे आस-पास रहते हैं वो हम नहीं जो बिखर जाएँ तल्ख़ बातों पर हमारे क़ाबू में अपने हवास रहते हैं सुनाऊँ क्या मैं तुम्हें दर्द-ए-दिल का अफ़्साना सबब है क्या कि जो हर पल उदास रहते हैं न बच सकोगे किसी तौर उन की नज़रों से हमारे शहर में चेहरा-शनास रहते हैं अयाँ न हम ने कभी की है तिश्नगी 'साहिर' छुपाए होंटों में हम अपने प्यास रहते हैं