जी बहलता ही नहीं ख़ाली क़फ़स से By Ghazal << मत बोलियो तू उस से 'ज... कौन होते हैं वो महफ़िल से... >> जी बहलता ही नहीं ख़ाली क़फ़स से रंग जैसे उड़ गए हों कैनवस से और कम याद आओगी अगले बरस तुम अब के कम याद आई हो पिछले बरस से फिर बचा जो चाँद वो मैं पी गया था सब हुए मदहोश जूँ ही उस चरस से Share on: