जिधर तुझ को जाते सनम देखते हैं उधर पहरों हसरत से हम देखते हैं नई क़ब्र किस की बनी है कि जिस पर तुम्हारे से नक़्श-ए-क़दम देखते हैं लबों को दबाए हँसी को चुराए यूँही मरने वालों को हम देखते हैं ख़ुदा जाने क्यूँ हाथ सीने पे रक्खा वो दिल देखते हैं कि दम देखते हैं मुक़द्दर उन्हीं का मुक़द्दर है 'इस्मत' जो ईफ़ा-ए-क़ौल-ओ-क़सम देखते हैं