जो कि ज़ेब-ए-सलीब-ओ-दार हुए दोनों आलम का शाहकार हुए दिल को तस्कीं हो किस तरह कि तुझे और भी मिल के बे-क़रार हुए कोई पूछे तो क्या बताएँ कि हम इश्क़ में क्यों ज़लील-ओ-ख़्वार हुए जब ख़ुलूस-ओ-वफ़ा की बात चली मेरे अहबाब शर्मसार हुए जाऊँगा सू-ए-कू-ए-रुसवाई जब भी हालात साज़गार हुए