जिन दिनों कुछ और इरादा था बहाना और था वो ज़माना और था वो कार-ख़ाना और था साजिदान-ए-कू-ए-जानाँ का ज़माना और था जुन्बिशें वो और थीं वो आस्ताना और था दाग़-ए-दिल क्यूँकर लुटा देता मैं हातिम की तरह वो ख़ज़ाना और था मेरा ख़ज़ाना और था क्यों न करता वो शिकार-अफ़्गन दिल-ए-उश्शाक़ सैद हर निशाना और था दिल का निशाना और था मेरे अर्ज़-ए-हाल में पढ़ने लगे तुम नल-दमन वो फ़साना और था मेरा फ़साना और था ज़ख़्मी-ए-तीर-ए-निगह तेग़-ए-ज़बाँ से मर गए तीर खाना और था तलवार खाना और था शाह-ए-ख़ैबर-गीर से मरहब को निस्बत कौन थी दर हिलाना और था मुगदर हिलाना और था आशिक़-ए-सादिक़ को मा'शूक़-ए-हक़ीक़ी चाहिए क़ैस-ए-अब्ला और था बहलोल-ए-दाना और था दीन-ए-अहमद से न थे ऐ 'रश्क' अदयान-ए-सलफ़ वो ज़माना और था अगला ज़माना और था