ख़ुदा है शाहिद कि इस सनम सा किसी सनम का बदन न देखा सुनी नज़ाकत सुनी हलावत कमर को मिस्ल-ए-दहन न देखा रियाज़-ए-दुनिया की क्या हक़ीक़त रियाज़-ए-जन्नत गो है तमन्ना किसी ने ऐ अंदलीब-ओ-क़ुमरी वो सर्व गुल-पैरहन न देखा हज़ारों मज़मून हम ने बाँधे छुपा जो मु-ए-नज़र कमर से लिए तसव्वुर ने लाखों बोसे जो रू-ए-ग़ुंचा-दहन न देखा ख़याल-ए-याक़ूब में न आता गुमान पैराहन-ए-पिसर का हज़ार अफ़्सोस उस ने तेरा पुराना भी पैरहन न देखा बनाए मदफ़न अजीब घर है कब इंहिदाम-ए-मकाँ का डर है रह-ए-फ़ना राह-ए-बे-ख़तर है यहाँ ग़म-ए-राह-ज़न न देखा ग़ज़ल का हर शे'र गर्म-तर है कलाम-ए-'रश्क' आतिश-ओ-शरर है ये सोहबत-ए-'मेहर' का असर है कि सर्द इस का सुख़न न देखा